यमुना नदी का सरस्वती घाट,
जिसके हो चले हैं
अब अच्छे ठाट ।
वहाँ पक्की, मजबूत सीढ़ियाँ देखकर
सहसा ठिठक गया ।
नदी किनारे की वो बालू की जमीन,
उस जमीन पर बना
वह दो जोड़ी पैरों का निशान,
सब ढक गया?
वहाँ कभी थी गीली-दलदली जमीन,
जिसके पास ही उसने
सूखी और साफ जगह दिखायी थी।
थोड़ी देर शान्त और एकान्त बैठकर,
अपनी बात सुनाने को,
उसने अपने दुपट्टे की चादर बिछायी थी।
था एक कठिन दौर,
जब वह अपनी कमजोरी
या कहें, कायरता
मिटा न सका था।
घर–परिवार के सपने तोड़कर,
अपने मदमस्त सपने
सच साबित करने का हौसला
जुटा न सका था।
उनके बीच की डोर
तनती जा रही थी।
प्यार के सपनों की राह पर
दुनियादारी की दीवार
बनती जा रही थी।
दुनिया से हारकर दोनो नें
अपनी उस दुनिया को
समेट लिया था।
दूर हो जाएंगे, यह जानकर
एक दूसरे को मन ही मन
भेंट लिया था।
फिर भी
बैठे रहते थे,
ठहरी हुई सी यमुना के किनारे,
उस मुट्ठी भर समय को पकड़कर।
जैसे रोक ले कोई,
पानी से भींगी रेत को
मुट्ठी में जकड़कर।
इस आस में,
कि जब तक पानी है,
यह रेत मुट्ठी से नहीं निकलेगी।
मानो यहाँ की गहरी यमुना
चन्द कदम चलकर,
वेगवती गंगा में नहीं मिलेगी।
बुझती आस को
जिन्दा करने की उम्मीद में,
उन्होंने समय की उस रेत में
आँखों का पानी भी मिलाया था।
लेकिन होनी तो होनी ही थी,
अँधेरा घना हुआ, वे लौट गये,
यमुना का पानी गंगा में जा समाया था ।
(सिद्धार्थ)
अगस्त 17, 2008 @ 07:47:00
वाह..अच्छी कविता..
अगस्त 17, 2008 @ 08:55:00
अच्छी कविता
अगस्त 18, 2008 @ 13:43:00
बहुत सुन्दर यादे,्बहुत कुछ कहती हे आप की कविता की पक्त्तियां . धन्यवाद
अगस्त 18, 2008 @ 16:05:00
अति सुंदर…बहुत उम्दा…..अद्भुत लिखा आपने.बहुत खूब.पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा.
अगस्त 18, 2008 @ 19:56:00
इस आस में,कि जब तक पानी है,यह रेत मुट्ठी से नहीं निकलेगी।मानो यहाँ की गहरी यमुनाचन्द कदम चलकर,वेगवती गंगा में नहीं मिलेगी।बहुत कुछ गहरा सा कह गये यार
अगस्त 18, 2008 @ 21:07:00
अँधेरा घना हुआ, वे लौट गये,यमुना का पानी गंगा में जा समाया था ।बहुत सुंदर ! अनन्त गहराई है !शुभकामनाएं !
अगस्त 20, 2008 @ 10:15:00
(ई-मेल पर प्राप्त टिप्पणी)Read your poem ‘ saraswati ghat’. I wanted to post the following comment on the blog but it wasn’t getting on to it. The comment was–” Beautiful sentiments. The poem is true to the definition of achieving universality through the particular ”.
अगस्त 23, 2008 @ 14:29:00
अरे सर किस बक्से से निकालकर लाए हैं।
नवम्बर 19, 2011 @ 17:47:30
भावुक हृदयोद्गार, जो man se nikal seedhe man ko छू पाने में समर्थ है…
नवम्बर 19, 2011 @ 17:47:36
भावुक हृदयोद्गार, जो man se nikal seedhe man ko छू पाने में समर्थ है…