मेरा एक घर जहाँ मेरे दादाजी ने अपना अधिकांश जीवन बिताया था, बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले में नारायणी नदी (बूढ़ी गण्डक) के किनारे है। वहाँ प्रायः प्रत्येक वर्ष घर के आंगन का पवित्रीकरण उफ़नाती नदी के जल से हो ही जाता है। इन दिनों जब बालमन ने समाचारों में बाढ़ की विभीषिका देखी तो उन्हें अपने वो दिन याद आ गये जब वे एक बार हफ़्तों वहाँ पानी से घिरे रहे:
पानी के सैलाबों में से, कुछ जगह दिखाई देती है।
कुछ लोग दिखाई पड़ते है, आवाज सुनाई देती है॥
सब डूब गया, सब नष्ट हुआ,कुछ बचा नहीं खाने को है।
बीवी को बच्चा होना है, और भैंस भी बियाने को है ॥
अम्मा जपती है राम-नाम, दो दिन से भूखी बैठी है।
वो गाँव की बुढिया काकी थी,जो अन्न बिना ही ऐंठी है॥
मोहना की मेहरारु रोती, चिल्लाती है, गुस्से में है।
फूटी किस्मत जो ब्याह हुआ, यह नर्क पड़ा हिस्से में है॥
रघुबर काका बतलाते हैं, अबतक यह बाढ़ नही देखी।
सत्तर वर्षों की उमर गयी, ऐसी मझधार नहीं देखी॥
कल टी.वी. वाले आये थे, सोचा पाएंगे खाने को।
बस पूछ्ताछ कर चले गए,मन तरस गया कुछ पाने को॥
पानी में प्यासे बैठे हैं, पर शौच नही करने पाते।
औरत की आफ़त विकट हुई, जो मर्द पेड़ पर निपटाते॥
पानी में बहती लाश यहाँ, चहुँओर दिखाई देती है।
कातर सी देखो गौ-माता, डंकार सुनाई देती है॥
मन में सवाल ये उठता है, काहे को जन्म दिये दाता ?
सच में तू कितना निष्ठुर है, क्यों खेल तुझे ऐसा भाता ?
किस गलती की है मिली सजा,जिसको बेबस होकर काटें।
सब साँस रोककर बैठे हैं, रातों पर दिन – दिन पर रातें॥
हो रहा हवाई सर्वेक्षण, कुछ पैकेट गिरने वाले हैं।
मन्त्री-अफसर ने छोड़ा जो, वो इनके बने निवाले हैं॥
है अंत कहाँ यह पता नहीं, पर यह जिजीविषा कैसी है।
‘कोसी’ उतार देगी गुस्सा, आखिर वो माँ के जैसी है॥
शब्द-दृश्यांकन: बालमन
अगस्त 29, 2008 @ 06:17:00
यथार्थ चित्रण कर दिया है आपने बाढ़ का… ये हर साल का नाटक हो गया है अब तो… नाटक ही तो है निति निर्माताओं की नज़र में !
अगस्त 29, 2008 @ 06:56:00
ओह, क्या त्रासदी है। यथार्थ चित्रण किया है आपने।
अगस्त 29, 2008 @ 06:58:00
त्रासदी ही कहा जा सकता है। काव्य चित्रण बहुत ही यथार्थ बन पड़ा है।
अगस्त 29, 2008 @ 07:42:00
बाढ़ त्रासदी की पीडा भरी अभिव्यक्ति !इन क्षणों में आप के साथ हूँ !
अगस्त 29, 2008 @ 12:55:00
सच कहूँ क्या हमारा देश हर साल की इन आपदायो से कुछ सीखता नही है…….जो बिहार देश को इतने बुद्धिजीवी इतने आईएस इतने आईटी सॉफ्टवेयर दे रहा है वहां के राजनेता इतने पंगु क्यों है ?२७ लाख लोग मुश्किल में है…पशुओ का जिक्र बाद में आता है…इतनी गरीबी इतनी परेशानी ?क्यों भारत के पास प्राकतिक आपदायो से निपटने के साधन नही है ? …..
अगस्त 29, 2008 @ 17:33:00
बाढ़ की त्रासदी का यथार्थ चित्रण. दुःख है.
अगस्त 29, 2008 @ 18:59:00
विकट त्रासदि का यथार्थ काव्यीकरण.
अगस्त 29, 2008 @ 21:05:00
आज सवेरे से रेलवे इस त्रासदी में अपनी तत्परता दिखा रही है। खाने का सामान, पानी वहन के मालगाड़ी के डिब्बे; बड़ी लाइन पर मीटरगेज के सवारी डिब्बों का लदान कर सहरसा त्वरित गति से भेजना आदि कार्य प्रारम्भ कर दिये हैं। पूरे स्टाफ को हमने सेंसिटाइज करने में समय लगाया आज।आपकी पोस्ट बहुत सामयिक है।
अगस्त 29, 2008 @ 21:46:00
यथार्थ चित्रण के साथ कविता में यथार्थ दर्शन कराया है आपने।
अगस्त 29, 2008 @ 22:39:00
क्या त्रासदी यथार्थ चित्रण है…
अगस्त 29, 2008 @ 22:43:00
Ishwar sabhi ki is trasadi se Raksha kare. meri samvedanaye sabhi ke sath hai.
अगस्त 30, 2008 @ 00:07:00
बाढ़ में मन डूब-सा गया। कविता का यथार्थ भाव रुआंसा कर गई।
अगस्त 30, 2008 @ 13:29:00
a scientific plan is needed for this area…perfect kavita…I salute this poetry !!