मारकण्डेय पुराण को शाक्त सम्प्रदाय का पुराण कहा जाता है। इसका प्रमुख कारण है- इसमें भगवती दुर्गा के चरित्र तथा दुर्गासप्तशती का विस्तृत वर्णन। दुर्गासप्तशती के तीनो पौराणिक आख्यानों का वर्णन होने के कारण यह पुराण साधारण जन में अत्यन्त लोकप्रिय है। इसके अन्तर्गत भगवती दुर्गा की उत्पत्ति, उनके द्वारा महिषासुर, मधु, कैटभ, शुम्भ, निशुम्भ, रक्तबीज आदि दैत्यों के वध तथा राजा सुरथ व समाधि वैश्य द्वारा भगवती दुर्गा से वरदान प्राप्त करने की कथाएं वर्णित हैं।
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की पूजा अपने-अपने ढंग से प्रायः सभी आस्थावान हिन्दू परिवारों में हो रही है। माँ दुर्गा की पूजा में गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती नामक पुस्तक का बड़ा महत्व है। कदाचित् इस पुस्तक के बिना दुर्गापूजा का कोई अनुष्ठान कर पाना सम्भव ही न हो। मूलतः सात सौ श्लोकों और तेरह अध्यायों से युक्त दुर्गासप्तशती मारकण्डेय पुराण से ही ली गयी है।
श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक में अनेक उपयोगी स्तोत्र, देवीसूक्त, रहस्य, और आरतियों का समावेश किया गया है। सप्तशती की पाठविधि भी सरल हिन्दी में मन्त्रों के अनुवाद सहित समझायी गयी है। इसी पाठ-विधि में अन्य तत्वों के साथ ही ‘देवी का कवच’, ‘अर्गलास्तोत्र’, व ‘कीलकमन्त्र’ हिन्दी अनुवाद सहित दिया गया है।
मैं यहाँ देवी के कवच की चर्चा करना चाहता हूँ। यहाँ देवी का उपासक सब प्रकार से अपनी रक्षा की कामना से भगवती दुर्गा के विविध ‘रूपों’ का आह्वाहन करता है; तथा प्रत्येक रुप से अपने अलग-अलग अंग विशेष की रक्षा करने की विनती करता है। इस वर्णन में एक ओर माँ दुर्गा के विविध रूप व नाम तो रोमांचित करते ही हैं, हजारों वर्ष पहले रचे गये इन श्लोकों में शरीर के विभिन्न अंगों को जिस सूक्ष्मता और वैज्ञानिक रीति से क्रमबद्ध करके प्रस्तुत किया गया है, वह भी कम रोचक नहीं है।
‘ए’ से लेकर ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था में लगी सरकारी एजेन्सियों और आपातकालीन चिकित्सा सेवा के प्रतिष्ठानों को इसे पढ़कर काफी कुछ सीखने को मिल सकता है। व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक सुरक्षा के जितने भी आयाम हो सकते हैं, यहाँ उन सबको गिनाते हुए अलग-अलग देवी रूपों को इसकी जिम्मेदारी दी गयी है। लीजिए, इसे आप भी जानिए:
प्रथम भाग: कुछ रक्षक देवीरुप और उनके वाहन–
1. चामुण्डा………………… प्रेत
2. वाराही…………………… भैंसा
3. ऐन्द्री……………………… ऐरावत हाथी
4. वैष्णवी…………………… गरुड़
5. माहेश्वरी………………… वृषभ (बैल)
6. कौमारी…………………… मयूर
7. ईश्वरी……………………… वृष
8. ब्राह्मी……………………… हंस
द्वितीय भाग: देवी द्वारा प्रयुक्त अस्त्र–शस्त्र–
शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल, मूसल, खेटक, तोमर, परशु, पाश, कुन्त, त्रिशूल, शार्ङ्गधनुष इत्यादि
1. पूर्व (प्राची)………………… ऐन्द्री (इन्द्रशक्ति)
2. आग्नेय……………………… अग्निशक्ति
3. दक्षिण………………………… वाराही
4. नैऋत्य……………………… खड्गधारिणी
5. पश्चिम (प्रतीची)………… वारुणी
6. वायव्य………………………… मृगवाहिनी
7. उत्तर……………………………. कौमारी
8. ईशान…………………………… शूलधारिणी
9. ऊर्ध्व (ऊपर )…………………. ब्रह्माणी
10.अधो भाग (नीचे )………… वैष्णवी
11. दसो दिशाओं से…………….. शववाहना चामुण्डा
चौथा भाग: शरीर के विविध अंग और उनकी रक्षक देवियाँ –
1. अग्रभाग—————————– जया
2. पृष्ठ भाग—————————– विजया
3. वाम पार्श्व—————————- अजिता
4. दक्षिण पार्श्व————————- अपराजिता
5. शिखा——————————– उद्योतिनी
6. मस्तक—————————— उमा
7. ललाट——————————– मालाधरी
8. भौंह———————————- यशस्विनी
9. भौंहों का मध्य भाग——————- त्रिनेत्रा
10. नथुने——————————– यमघण्टा
11. नेत्रों का मध्य भाग——————- शङ्खिनी
12. कान———————————-द्वारवासिनी
13. कपोल——————————– कालिका
14. कर्णमूल—————————— शांकरी
15. नासिका—————————— सुगन्धा
16. उपरी ओठ—————————- चर्चिका
17. निचले ओठ————————– अमृतकला
18. जिह्वा——————————— सरस्वती
19. दाँत———————————- कौमारी
20. कंठप्रदेश—————————– चण्डिका
21. गले की घाँटी————————– चित्रघण्टा
22. तालु———————————- महामाया
23. ठोढ़ी (चिबुक)————————- कामाक्षी
24. वाणी———————————- सर्वमङ्गला
25. ग्रीवा (गर्दन)————————– भद्रकाली
26. पृष्ठवंश (मेरुदण्ड)———————- धनुर्धरी
27. बाहरी कंठ-प्रदेश———————– नीलग्रीवा
28. कंठ की नली————————— नलकूबरी
29. कंधे———————————— खड्गिनी
30. भुजाएं——————————— वज्रधारिणी
31. हाथ————————————- दण्डिनी
32. अंगुलियाँ——————————- अम्बिका
33. नाखून———————————- शूलेश्वरी
34. कुक्षि(पेट)——————————- कुलेश्वरी
35. दोनो स्तन—————————— महादेवी
36. मन————————————- शोकविनाशिनी
37. हृदय————————————- ललिता देवी
38. उदर————————————- शूलधारिणी
39. नाभि———————————— कामिनी
40. गुह्यभाग——————————— गुह्येश्वरी
41. लिङ्ग———————————— पूतना, कामिका
42. गुदा————————————– महिषवाहिनी
43. कटि-प्रदेश(कमर)———————— भगवती
44. घुटना———————————— विन्ध्यावासिनी
45. पिण्डलियाँ——————————- महाबला
46. गुल्फ(घुट्ठियाँ)—————————- नारसिंही
47. पादपृष्ठ———————————– तैजसी
48. पैरों की अंगुलियाँ———————— श्रीदेवी
49. तलुए———————————— तलवासिनी
50. नख————————————– दंष्ट्राकराली
51. केश————————————– ऊर्ध्वकेशिनी
52. रोमकूप———————————- कौबेरी
53. त्वचा———————————— वागीश्वरी
54. रक्त,मज्जा,वसा,मांस,हड्डी,मेदा———- पार्वती
55. आँत————————————- कालरात्रि
56. पित्त————————————- मुकुटेश्वरी
57. मूलाधार(पद्मकोश)———————- पद्मावती
58. कफ————————————- चूड़ामणि देवी
59. नख का तेज—————————– ज्वालामुखी
60. शारीरिक संधियाँ———————— अभेद्या
61. वीर्य————————————– ब्रह्माणि
62. छाया————————————- छत्रेश्वरी
63. अहंकार,मन,बुद्धि————————- धर्मधारिणी
64. वायु (प्राण,अपान,व्यान,उदान,समान)—- वज्रहस्ता
65. प्राण————————————– कल्याणशोभना
66. विषय (रस,रूप,गन्ध,शब्द,स्पर्श)———- योगिनी
67. त्रिगुण (सत्व,रज,तम)——————— नारायणी
68. आयु————————————– वाराही
69. धर्म————————————— वैष्णवी
70. यश,कीर्ति,लक्ष्मी,धन,विद्या—————- चक्रिणी
71. गोत्र—————————————- इन्द्राणी
(अंगो से इतर कुछ अन्य महत्वपूर्ण उपादेय)
72. पशु———————————- चण्डिका
73. पुत्र———————————– महालक्ष्मी
74. पत्नी———————————- भैरवी
75. पथ में——————————– सुपथा
76. मार्ग में——————————- क्षेमकरी
77. राजदरबार में————————- महालक्ष्मी
78. सम्पूर्ण भयों से———————– विजया देवी
79. कवच में जो छूट गया हो————– देवी दुर्गा
🙂…आशा करता हूँ कि अब आप किसी देवी प्रतिमा के आगे या किसी मन्दिर में खड़े होंगे तो वहाँ अपनी मांग रखने में कुछ ज्यादा समय लेंगे।
🙂…असुरक्षा भाव में जी रहे माननीय नेतागण इसे भूल जाने की कोशिश करें अन्यथा सरकार की मुसीबत बढ़ सकती है। 🙂…सुरक्षाकर्मियों की मांग मे उछाल आ सकता है।
(सिद्धार्थ)
लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`
अक्टूबर 04, 2008 @ 08:26:00
Bahut sunder varnan kiya hai ..Jai Mata Durge Devi Namo Namo…
Gyandutt Pandey
अक्टूबर 04, 2008 @ 10:44:00
दुर्गा सप्तशती को मनोयोग से नहीं पढ़ा। अब इच्छा हो रही है।अब तक तो मातृशक्ति के बारे में पढ़ने को मैं श्री अरविन्द की “द मदर” खोलता था।पोस्ट बहुत बढ़िया है। धन्यवाद।
अजित वडनेरकर
अक्टूबर 04, 2008 @ 12:35:00
दिलचस्प भी , ज्ञानवर्धक भी…
डॉ .अनुराग
अक्टूबर 04, 2008 @ 14:11:00
ज्ञानवर्धक लेख ……
निरन्तर
अक्टूबर 04, 2008 @ 20:08:00
bahut hi badhiya janakaripoorn gyanavaraddhak alekh . Abhar……shukriya.
Udan Tashtari
अक्टूबर 04, 2008 @ 23:32:00
बहुत ही सुन्दर और ज्ञानवर्धक पोस्ट. सहेजने योग्य पोस्ट कम दिखती है, उनमें से यह एक है, जिसे मैं सहेज कर रख रहा हूँ. आभार.
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
अक्टूबर 05, 2008 @ 00:56:00
जानकारी के लिए धन्यवाद!
Arvind Mishra
अक्टूबर 06, 2008 @ 18:26:00
प्रभावशाली अंग सूची !
RAJ SINH
अक्टूबर 16, 2008 @ 18:08:00
SIDDHARTHJI,’MAA’ KE BARE ME ITNEE SUNDAR JANKAREE EK SATH ! AAP MATRISHAKTI KEE YASHOGATHA KEE APRATIM AARADHNA KAR RAHE HAIN. PRARTHNA KAROONGA ‘MAA’ APKO ISEE TARAH KRIT SANKALP BANAYE RAKHEN. SADHUVAD.
madhu
सितम्बर 30, 2011 @ 19:51:16
इस सूची के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।मेरे अध्यापक के अनुसार, अठ्ठािसवें श्लोक में कुक्षौ काँख/बगल है। मूल शब्द कुक्ष है। क्या आप सहमत हैं?मधु