इलाहाबाद में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए दूर-दूर से आनेवाले विद्यार्थियों की एक ऐसी जमात है जो विश्वविद्यालय के छात्रावासों के अलावा इसके चारो ओर पसरे मुहल्लों, जैसे कटरा, कर्नलगंज, मम्फ़ोर्डगंज, एलनगंज, सलोरी, अल्लापुर, चर्चलेन, टैगोरटाउन, कमलानगर, राजापुर, से लेकर तेलियरगंज और दारागंज की संकरी गलियों और नुक्कड़ों पर चाय पीते और परिचर्चा करते मिल जाएगी। इस शहर की अर्थव्यवस्था में इन प्रवासी विद्यार्थियों की बहुत बड़ी भूमिका है।
श्री फणीश्वर त्रिपाठी इलाहाबाद की पहचान बताने वाली उसी जमात से आते हैं। फिलहाल मेरे साथ हैं। अभी प्रतियोगी परीक्षाओं में जुटे हुए हैं। कोर्स से अलग हटकर कभी-कभार अपने आस-पास की चीजों में कविता ढूँढ लेते हैं। आप इन्हें पहले भी यहाँ और यहाँ पढ़ चुके हैं। अपने स्वर्गीय दादा जी का दिया नाम बालमन ये बड़ी श्रद्धा से अपनी कविताओं के लिए प्रयोग करते हैं। आज प्रस्तुत है इनकी आत्मानुभूति से उपजी दो कविताएं:
(१) परीक्षा और प्रसव
किसी परीक्षा का आवेदन पत्र भरना,
एक बीजारोपण है सृजन का,
उत्पादक क्षमता की दागबेल
परीक्षा की तैयारी और उसका इन्तजार,
गर्भकाल की ही तरह लंबा और सतर्क
नौ से दस महीने का,
बीच में बुने गये सपने बड़े मीठे,
एक बच्चे की तोतली बोली की तरह,
रिजल्ट की प्रतीक्षा
जैसे प्रसव की आहट
एक बेचैन सुगबुगाहट
उत्सुकता, भय, खुशी, सभी का मिश्रण,
बच्चा सकुशल हो तो,
सारे कष्ट पीछे छूट जाते हैं,
किन्तु अवांछित परिणाम?
प्रसव-वेदना को बढ़ा देता है,
लेकिन समय का मलहम
घाव को भरता है
परीक्षार्थी दोगुनी मेहनत से
अगला प्रयास करता है।
(२) रिजल्ट की प्रतीक्षा
घड़ी की सूईयों की टिक-टिक,
टन-टन सी प्रतीत होती है,
धड़कनों की धक-धक,
धड़-धड़ सी हो जाती है,
अपनी ही सासों की रफ़्तार डरा देती है,
कनपटी पर आ जाता है पसीना,
चुनचुनाहट सी होती है सिर में,
पैरों के तलवे पसीज जाते हैं,
गला फ़ँसता है बार-बार,
बाथरूम जाने की इच्छा होती है,
तब, जब इंतजार हो,
सामने आने वाले रिजल्ट का।
(बालमन)
मेरी पिछली पोस्ट तिल ने जो दर्द दिया अमर उजाला के सम्पादकीय पृष्ठ पर ब्लॉग कोना में जगह बनाने में सफल रही। आप मेरी पीठ थपथपा सकते हैं। मैं बुरा नहीं मानूंगा….:)
जनवरी 10, 2009 @ 06:51:00
कंधे पर थाप आपके और बालमन के भी !
जनवरी 10, 2009 @ 09:39:00
अच्छा तुलनात्मक बाल मनन!!बधाई आपको भी!!
जनवरी 10, 2009 @ 11:22:00
बधाई।
जनवरी 10, 2009 @ 12:17:00
बिल्कुल सच! जितनी परीक्षायें दी हैं, सब याद आईं और न जाने कितनी प्रसव पीड़ा झेल चुके हैं हम। अधेड़ावस्था में भी झेल रहे हैं।Life is continuum of examinations!
जनवरी 10, 2009 @ 15:13:00
अरे क्यो फ़िर से यह सब याद दिला रहे हो… लेकिन अब भी यह प्रसव पीड़ा तो झेल रहे है, अब बच्चो की परीक्षा का उन से ज्यादा हमे फ़िक्र होता है.धन्यवाद
जनवरी 10, 2009 @ 16:16:00
बालमन जी की कविता बहुत बढ़िया रही. सच है परीक्षा, उसकी तैयारी, उसका परिणाम…ऐसा ही होता है.आपकी पोस्ट अमर उजाला में छपी इसके लिए आपको बधाई. पीठ की थपथपाई.
जनवरी 11, 2009 @ 09:42:00
A terse and precise image. Badhia . AMAR UJALA par chapne ke liye bhi sidhdhjartha ko badhaiyan.
जनवरी 12, 2009 @ 19:34:00
This post has been removed by the author.
जनवरी 12, 2009 @ 19:35:00
बालमन जी को ढेर सारी शुभकामनायें आगामी परीक्षा के लिए ! फिर बधाई अमर उजाला के लिए. बाकी परीक्षाएं तो हमारा पीछा ही नहीं छोड़ रही 🙂
जनवरी 13, 2009 @ 14:07:00
बालमन को शुभकामनाएँ व आपको अमर उजाला में उल्लेख के लिए बहुत-सी बधाई।
जनवरी 16, 2009 @ 19:41:00
har pariksharthi dil ki aawaj aaj kah hi dali,waktawya ka kagaj tha kora rang AAJ aapne bhar dali.amar ujala me ullekh ke liye badhai, lekin ummid ABHI KUCHH AUR BHI HAI.