पिछले कुछ समय से

जब राह चलते स्कूल-कॉलेज के बच्चे

किसी पार्टी या बारात में उछलते-कूदते लड़के-लड़कियाँ

किसी रिश्तेदार या मित्र के घर

कालबेल बजाने पर दरवाजा खोलते

किशोर-किशोरियाँ

मेरा अभिवादन करते

तो मैं सतर्क हो जाता

‘अंकल जी’ सुनकर

चिहुँक जाता

मेरा युवा मन मचल उठता

यह बताने को कि मैं उनका दोस्त सरीखा हूँ

अभी इतना बड़ा नहीं कि पिछली पीढ़ी का कहलाऊँ

भैया या सर कहलाना अच्छा लगता

चाचा नहीं

लेकिन अब

समय की पटरी पर वह चिह्‍न आ ही गया

जब स्वीकार लूँ

मेरे नीचे एक नयी पीढ़ी आ चुकी है

चालीस बसंत जो देख लिए

सोचता हूँ

अब तो बड़ा बनके रहना पड़ेगा

बहुत कठिन है यह सब

जिम्मेदारी का काम है

अनुशासन और मर्यादा की चिंता

जो पहले भी थी

लेकिन एक शृंगार की तरह

अब तो जवाबदेही होगी

नयी पीढ़ी के प्रति

तथापि

मन तो युवा रहेगा ही

हमेशा

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(सिद्धार्थ)

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