इस बार की होली में गाँव जाना नहीं हो पाया है। त्यौहारों में गाँव की होली ही सबसे अधिक मिस करते हैं हम। वहाँ होली के दिन सबसे रोचक होता है जोगीरा पार्टी का नाच-गाना। गाँव के दलित समुदाय के बड़े लड़के और वयस्क अपने बीच से किसी मर्द को ही साड़ी पहनाकर स्त्रैंण श्रृंगारों से सजाकर नचनिया बनाते हैं। यहाँ इसे ‘लवण्डा’ नचाना कहते हैं। जोगीरा बोलने वाला इस डान्सर को जानी कहता है। दूसरे कलाकार हीरो बनकर जोगीरा गाते हैं। और पूरा समूह प्रत्येक कवित्त के अन्त में जोर-जोर से सररर… की धुन पर कूद-कूद कर नाचता है। वाह भाई वाह… वाह खेलाड़ी वाह… का ठेका लगता रहता है।
कुछ जोगीरा दलों के (दोहा सदृश) कवित्तों की बानगी यहाँ पेश है :
[दोहे की पहली लाइन दो-तीन बार पढ़ी जाती है, उसके बाद दूसरी लाइन के अन्त में सबका स्वर ऊँचा हो जाता है।]
जोगीरा सर रर… रर… रर…
फागुन के महीना आइल ऊड़े रंग गुलाल।
एक ही रंग में सभै रंगाइल लोगवा भइल बेहाल॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
गोरिया घर से बाहर गइली, भऽरे गइली पानी।
बीच कुँआ पर लात फिसलि गे, गिरि गइली चितानी॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
चली जा दौड़ी-दौड़ी, खालऽ गुलाबी रेवड़ी।
नदी के ठण्डा पानी, तनी तू पी लऽ जानी॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
चिउरा करे चरर चरर, दही लबा लब।
दूनो बीचै गूर मिलाके मारऽ गबा गब॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
सावन मास लुगइया चमके, कातिक मास में कूकुर।
फागुन मास मनइया चमके, करे हुकुर हुकुर॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
एक त चीकन पुरइन पतई, दूसर चीकन घीव।
तीसर चीकन गोरी के जोबना, देखि के ललचे जीव॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
भउजी के सामान बनल बा अँखिया कइली काजर।
ओठवा लाले-लाल रंगवली बूना कइली चाकर॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
ढोलक के बम बजाओ, नहीं तो बाहर जाओ।
नहीं तो मारब तेरा, तेरा में हक है मेरा॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
बनवा बीच कोइलिया बोले, पपिहा नदी के तीर।
अंगना में भउजइया डोले, जइसे झलके नीर॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
गील-गील गिल-गिल कटार, तू खोलऽ चोटी के बार।
ई लौण्डा हऽ छिनार, ए जानी के हम भतार॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
आज मंगल कल मंगल मंगले मंगल।
जानी को ले आये हैं जंगले जंगल॥
जोगीरा सर रर… रर… रर…
कै हाथ के धोती पहना कै हाथ लपेटा।
कै घाट का पानी पीता, कै बाप का बेटा?
जोगीरा सर रर… रर… रर…
ये पंक्तियाँ पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार के भोजपुरी लोकगायकों द्वारा अब रिकार्ड कराकर व्यावसायिक लाभ के लिए भी प्रयुक्त की जा रही हैं। शायद यह धरोहर बची रह जाय।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
मार्च 20, 2011 @ 15:33:15
बहुत जानकारीपूर्ण आलेख …होली पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं …
मार्च 20, 2011 @ 16:15:10
मस्ती भरा संगीत।
मार्च 20, 2011 @ 18:44:20
मैं तो कभी भी गाँव में होली के समय नहीं जा पाया हूँ….समय ही ऐसा होता है। मुंबई में बचपन से लेकर अब तक अपने स्कूली, कॉलेजीय जीवन के दौरान फागुन का वक्त Exam time से थोड़ा पहले का होता था, अब बच्चों के Exam Time का होता है। देखिए कब बदा है होली में जाना । जोगीरा पढ़ आनंद आया, मस्त।
मार्च 20, 2011 @ 19:47:00
जानकारी के लिये आभार। जब व्यवसाय जुड जाता है तो धरोहर बच जाती है।
मार्च 20, 2011 @ 20:10:10
मज़ा आ गया।जोगीरा पढकर मज़ा गया।जोगीरा सा रा रा रा रा राहैप्पी होली!
मार्च 20, 2011 @ 20:11:52
आदरणीय सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी सादर प्रणाम गीत में मस्ती के भाव सुंदर ढंग से अम्प्रेषित हुए हैं आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें .
मार्च 20, 2011 @ 20:16:15
.होली पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं …
मार्च 20, 2011 @ 21:03:23
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
मार्च 20, 2011 @ 21:05:25
जैसे भी हो बचे रहें अपनी माटी के गीत और प्रतिकूल समय व स्वार्थ की बयार उनकी सुवास को नष्ट न करे!जय हो।सदा आनंदा रहैं यहि द्वारे!
मार्च 20, 2011 @ 22:40:51
जोगिरा से परिचय कराने लिए आभार त्रिपाठी जी ॥
मार्च 21, 2011 @ 00:52:11
गांव तो मुझे बहुत सुंदर लगते हे, लेकिन कभी भी होली के समय किसी गांव मे नही गया, बहुत सुंदर विवरण दिया आप ने, धन्यवाद
मार्च 21, 2011 @ 08:02:27
कल ही एक धारावाहिक प्रतिज्ञा में इलाहाबाद के जोगीरा के बारे में जाना …इनके माध्यम से ही लोकरंग जीवित रहे तो भी ठीक ही है …पर्व की बहुत शुभकामनायें !
मार्च 21, 2011 @ 08:46:52
यह आलेख बहुत अच्छा लगा।
मार्च 21, 2011 @ 15:28:15
वाह वाह बहुत मस्त…
मार्च 21, 2011 @ 22:08:08
मज़ा आ गया जोगीरा पढ़ कर.होली की शुभकामनाएँ.
मार्च 22, 2011 @ 00:14:20
बढिया जोगीरा है भाई.
मार्च 22, 2011 @ 00:19:12
वाह भी वाह …….वाह खिलाड़ी….वाह!!!
मार्च 22, 2011 @ 16:36:55
इस बार गावं की होली में सामिल नहीं हो सका पर yaha ये सब पढ़कर गावं के होली का पूरा दृश्य सामने आ गया…..
मार्च 22, 2011 @ 18:09:24
ee hue na khanti sarararara…….ek chatank gulal hamre taraf se bhi rakh lel jai……agle saal kam aaeepranam.
मार्च 23, 2011 @ 09:39:39
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्याख्या।
मार्च 25, 2011 @ 19:23:43
जीने के लिए आवश्यक हैं यह मस्ती …शुभकामनायें !!
मार्च 25, 2011 @ 20:27:13
दोनों गुरुभाई गजब हैं!
मार्च 25, 2011 @ 22:28:40
ये पंक्तियाँ पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार के भोजपुरी लोकगायकों द्वारा अब रिकार्ड कराकर व्यावसायिक लाभ के लिए भी प्रयुक्त की जा रही हैं। शायद यह धरोहर बची रह जाय।आपने भी इसे ब्लॉग पर डाल कर सबके लिए सुलभ कर दिया है। एतदर्थ आभार!