अपने बारे में

अपनी रूचि के काम नहीं कर पाने का मलाल लिए मैं अपनी गृहस्थी में खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ। पत्रकारिता, लेखन, रंगमंच, पत्रमित्रता, चित्रकारी आदि एक-एक कर शगल बन कर आए और परवान चढ़ने से पहले ही चलते बने। मिडिल-क्लास मानसिकता ने सरकारी नौकरी को ही जीवन का श्रेय-प्रेय मान लिया था. जबसे मिल गई तबसे ही यह शेर हॉन्ट करता है:

 जिंदगी में शौक क्या कारे- नुमाया कर गए;

बी.ए. किया, नौकर हुए, पेंशन मिली और मर गए.

अब फ़िर से कोशिश कर रहा हूँ अपने भीतर से टटोलकर कुछ बाहर लाने की…मित्रों से कुछ सीखने की लालसा है और कुछ बाँटने का उत्साह है…

हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो;
और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

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