जिलाधिकारी द्वारा प्रकाशित छुट्टियों की लिस्ट अपनी ऑफिस टेबल के शीशे से दबाकर सभी अधिकारियों की तरह मैने भी लगा रखा है। हाँलाकि उसमें दिखने वाली सभी छुट्टियाँ हम ट्रेजरी वालों को नसीब नहीं होती। स्थानीय अवकाश, निर्बन्धित अवकाश और कार्यकारी अवकाश के दिन हमारे लिए बहुत कोफ़्त के होते हैं। इन दिनों दूसरे दफ़्तर जब बन्द रहते हैं तब भी बैंक की तरह हम सरकारी खजाना खोलकर बैठे रहते हैं। महीने का दूसरा शनिवार भी हमें सालता है। महीने के पहले सप्ताह में तनख्वाह लेकर इस दिन सरकारी कर्मचारी बाजार जाते हैं और महीने की खरीदारी करते हैं। लेकिन हम यह काम भी शाम को घर लौटने के बाद ही कर पाते हैं।

इलाहाबाद की ट्रेजरी में एक अतिरिक्त लफ़ड़ा भी है। यहाँ आए दिन कोई न कोई प्रतियोगी परीक्षा होती रहती है जो प्रायः रविवार की छुट्टी के दिन पड़ती है। इन परीक्षाओं के प्रश्नपत्र सीलबन्द लिफाफों में हमारे द्वितालक दृढ़कक्ष (double-lock strong room) में रखे जाते हैं, जिन्हें परीक्षा प्रारम्भ होने के एक घण्टा पहले निकालकर मजिस्ट्रेट के हाथों परीक्षा केन्द्र तक भेंजा जाता है। परीक्षा में दो पारियाँ हों तो डबल-लॉक दो बार खोला जाता है। यानि हमारी साप्ताहिक छुट्टी भी नौकरी के हवाले चली जाती है।

ऐसे अवकाश-त्रसित मन को जब पता चला कि क्रिसमस से लेकर मोहर्रम तक लगातार चार दिन में तीन दिन छुट्टी के हैं और इस बीच कोई परीक्षा भी नहीं है तो मन बल्लियों उछल पड़ा। खूब आराम करेंगे। किसी काम की फिक्र न होगी। बेटी का स्कूल और संगीत क्लास दोनो बन्द रहेगा, इसलिए उसे छोड़ना भी न होगा। मेयोहाल भी दो दिन बन्द रहेगा, इसलिए बैडमिण्टन से भी आराम रहेगा। सुबह जल्दी उठने का कोई टेंशन नहीं। ….ब्लॉगरी में जो काम पिछड़ गये हैं वो सब बैकलॉग पूरा कर लेंगे। फीडरीडर का जाम हटा लेंगे….  ना..ना..ना.., तब तो फिर छुट्टी का मजा जाता रहेगा। ठीक है… ब्लॉगरी को भी नमस्ते कर देंगे। जैसे इतना छूटा है वैसे थोड़ा और सही। इस छुट्टी में तो मन मस्तिष्क को पूरा ‘रेस्ट’ पर रखेंगे। कुछ नहीं सोचेंगे, कुछ नहीं करेंगे… बस देर तक अलसाए बिस्तर पर पड़े रहेंगे… नींद का ओवरडोज लेंगे… खूब निश्चिन्त होकर पड़े रहेंगे… ऐसा दुर्लभ सुख फिर मिले न मिले…!!!

रविवार की सुबह अखबार ने बताया कि भारत-श्रीलंका का आखिरी एकदिवसीय मैच सुबह नौ बजे प्रारम्भ हो जाएगा। ३-१ की अपराजेय बढ़त के साथ उतरने वाली भारतीय टीम की उम्दा बल्लेबाजी  का लुत्फ़ उठाने का ऐसा मौका हाथ से क्यों जाने दूँ। छुट्टी के दिन मैच हो तो क्या कहने। ऑफ़िस मे होने पर तो बार-बार घर से स्कोर पूछता रहता हूँ, आज तो पूरा मैच लाइव देखना है। बस मैं तुरत-फुरत रजाई से बाहर निकला, जल्दी-जल्दी नहा लिया, खड़े-खड़े भन्न से पूजा किया और टन्न से टीवी ऑन कर दिया। ड्राइंग रूम की सेन्ट्रल टेबल किनारे कर कालीन पर गद्दे डालकर चादर बिछायी, मसनद लगाया और कम्बल में पैर डालकर अधलेटा हो लिया। दिनभर सोफ़े पर बैठना मुश्किल जो था। वाह क्या आनन्द था…!Upul Tharanga was cleaned up first ball 

डिश टीवी वाले नियो-क्रिकेट चैनेल नहीं दिखाते इसलिए इसका ‘मैक्सी पैकेज’ लेने के बाद भी मुझे इस एक चैनेल के लिए लोकल केबल वाले से अनुरोध करना पड़ा था। यह बात दीगर है कि जब तक मुझे यह सुविधा मिली तबतक टेस्ट श्रृंखला समाप्त हो चुकी थी और टी-२० तथा ओडीआई का प्रसारण अपने दूरदर्शन पर आने लगा था। फिर भी मैने केबल कनेक्शन चेक कर लिया था, दूरदर्शन का क्या भरोसा… कभी भी खेदप्रकाश की तख्ती नमूदार हो सकती है। आधे घण्टे की समीक्षा ध्यान से सुनने के बाद असली मैच शुरू हुआ। श्रीमती जी इस बीच कई बार मुझे हिकारत से देखकर जा चुकी थीं। चूंकि मेरी यह कमजोरी जानती हैं इसलिए शायद कुछ ऐसा-वैसा नहीं कहा। वर्ना मजाल क्या कि उनके सजाए ड्राइंग रूम में किसी परिवर्तन की गुस्ताखी मैं कर सकूँ।

टॉस जीतने के बाद भारत ने श्रीलंका को बल्लेबाजी की दावत दी थी। सुनील गावस्कर पिच की रिपोर्ट में गोलमोल बता चुके थे कि बहुत अच्छा मैच होगा। पिच में जान है। शुरुआती घण्टे में गेंदबाजों के लिए मददगार रहेगी लेकिन बल्लेबाजों को भी निराश होने की जरूरत नहीं है। बाद में खूब रन बरसेंगे। बहुत जबरदस्त मुकाबला होगा…। पिच को सहलाते हुए कैमरा क्लोजप शॉट ले रहा था। हल्की खुरदरी घास…। गावस्कर बोले- यह किसी गन्जे सिर पर ताजा रोपे गये नकली बालों की तरह दिख रही है। जो गेंद घास पर पड़ेगी उसकी उछाल और दिशा अलग होगी और गन्जे हिस्से पर गिरने वाली गेंद अलग…। मैं इतनी बारीकी नहीं समझता इसलिए पहली गेंद फ़ेंके जाने का इन्तजार करता रहा।

पहला ओवर जहीर खान का था। पहली गेंद फेंकते ही जोरदार शोर हुआ। खब्बू ओपनर उपुल थरंगा अपने पैड को बल्ले से ढंके हुए रक्षात्मक मुद्रा में खड़े थे और उनकी गिल्लियाँ हवा में बिखर चुकी थीं। ओ, व्हाट ए स्टार्ट… !! कमेण्ट्रेटर उत्तेजित थे। इसके बाद तो जो खेल आगे बढ़ा उसे देखकर भारतीय दर्शक खुशी से झूम उठे। जब एक के बाद एक विकेट सस्ते में गिरने लगे तो मेरा मन अजीब उदासी का शिकार होने लगा। ऐसे तो पूरे दिन रोमांच बना ही नहीं रहेगा। चुनौती ही नहीं रहेगी तो इण्डिया बैटिंग क्या करेगी।

Fall of wickets1-0 (Tharanga, 0.1 ov), 2-39 (Dilshan, 10.5 ov), 3-58 (Sangakkara, 15.1 ov), 4-60 (Jayasuriya, 16.4 ov),5-63 (Samaraweera, 17.6 ov)

पहली गेंद पर विकेट, दूसरे ओवर की पहली गेंद पर छूटा कैच, ब्ल्लेबाजों की कुहनी, कन्धे और अंगुलियों पर बार बार लगती चोटें, विकेटों के बीच हड़बड़ी में लगती दौड़, थर्डमैन को छकाती थिक-एज से निकलती सनसनाती गेंदे, जहीर खान, हरभजन सिंह और पहला मैच खेल रहे सुदीप त्यागी को मिलने वाले एक-एक विकेट, दो मैचों का प्रतिबन्ध झेलकर लौटे धोनी की शानदार विकेटकीपिंग, रैना का धारदार क्षेत्ररक्षण और रन आउट… इस पहले सत्र में क्या-क्या नहीं देखने को मिला।

 

लेकिन चौबीसवें ओवर के आते-आते वह हो गया जो किसी को पसन्द नहीं आया होगा। मैच रद्द होने की ओर बढ़ गया। चोटग्रस्त श्रीलंकाई टीम ने पिच की शिकायत की और मैच रेफ़री ने काफी सोच-विचार के बाद मैच को रद्द कर दिया और हमने टीवी से नजर हटाकर कम्बल में मुंह ढंक लिया। अब श्रीमती जी क सब्र टूट चुका था। उन्होंने कम्बल उठाया और लेकर चली गयीं। मने भी मन मसोस कर अपना गद्दा समेट लिया। सेन्ट्रल टेबल अपने स्थान पर आ गयी, और मैं कम्प्यूटर पर अपनी ब्लॉगरी में आधे मन से जुट गया। 

छुट्टी का मजा एक बार फिर किरकिरा हो लिया है। आलसी होने का सपना चूर-चूर हो गया। कल मैच के दौरान गिरिजेश भइया ने फोन पर दरियाफ़्त भी की थी कि कहाँ गायब हो गये हो। मैने बताया कि आपकी आलसी वाली उपाधि हथियाने की फिराक में हूँ। आलसी का चिट्ठा तो गजब की तेजी पकड़ चुका है इसलिए भूमिका हथियाने की राह पर चल पड़ा हूँ। आज बहुत आलस के बाद यह पोस्ट ठेल रहा हूँ।

बीबी-बच्चे भुनभुना रहे हैं, इसलिए यहीं बन्द करता हूँ और चलता हूँ इन्हें थ्री ईडिएट्स दिखाने। मुझे देख-देखकर शायद ये बोर हो चुके हैं।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

पुछल्ला : मजेदार फिल्म रही: थ्री ईडिएट्स। कहकहे और भावुक स्वर (आँसू) दोनो बारी-बारी आते रहे दर्शकों के बीच से। बहुत दिन बाद कोई फिल्म देखा और भरपूर आनन्द उठाया।

आप सब को नये साल की हार्दिक शुभकामनाएं।

(सिद्धार्थ)