अभी-अभी इलाहाबाद में एक गान्धी आये थे। …राहुल गान्धी । चर्चा में ‘गान्धी ’ पर बहस हो गयी… राहुल, वरुण, संजय, राजीव, इन्दिरा, फिरोज़, से होते हुए बात ‘असली गान्धी ’ तक पहुँच गयी।

सत्य, अहिंसा, भाईचारा, धार्मिक सहिष्णुता, गरीबी उन्मूलन, दरिद्रनारायण की सेवा, अस्पृश्यता निवारण का ध्येय, गीता के निष्काम-कर्म का प्रेय; यही तो थी गान्धी की राह! …विदेशी दुश्मन के सामने निर्भीक सीना ताने अडिग अपनी टेक पर स्वराज की चाह!

…साम्प्रदायिकता से लड़ाई अकेले लड़ने की धुन …जब पूरा देश स्वतंत्रता का झण्डा फहरा रहा था …तो भी वह संत इन्सानियत के शीतल जल से नोआखाली में हैवानियत की आग बुझा रहा था …

एक वहशी हिन्दू को यह गान्धीगीरी रास न आयी… उसकी गोलियों ने ‘राम-नाम’ के रस में डूबे उस निर्भीक सीने में जगह बनायी…। कानून ने पूरी चुस्ती और फुर्ती से अपना काम दिखाया …उस दरिन्दे को नियमानुसार फाँसी पर लटकाया। देश के नेताओं ने सबको ढाँढस बँधाया… “गान्धी व्यक्ति नहीं विचार है-जो कभी नहीं मरता…” ऐसा समझाया।

लेकिन यह बात समझने में हमारी आत्मा रोज झिझकती है। मन में बारम्बार यह बात खटकती है… गान्धी की तस्वीर को अपने पीछे की दीवार पर टाँगकर, उसके ‘विचारों’ की जघन्य हत्या करने की दुर्घटना रोज ही घटती है…

अखबार पलटता हूँ तो साफ दिखता है, कि आज कश्मीर में, हो रहा है रोज गान्धी का खून सरेआम… इसे अन्जाम देने वाले पहनते हैं गान्धी आश्रम की खादी… काट रहे हैं सत्ता की चाँदी… और उसी की टोपी पहनकर तिरंगे को करते हैं सलाम…

फैलने देते हैं साम्प्रदायिकता का जहर… बैठे हुए सत्ता की मखमली गद्दी में धँसकर… हिंसा को तबतक चलने देते हैं, जबतक न बन न जाये यह आँधी… भले ही कब्र में करवट बदलते-बदलते उकता कर उठ बैठें इनके बापू गान्धी…

अमरनाथ के यात्री भी हो जाते हैं अस्पृश्य, अपने ही देश में नहीं मिलती दो ग़ज जमीन, हो जाती है दुर्लभ, जहाँ बैठकर सुस्ता सकें… बाबा के दर्शन की थकान, घड़ीभर ठहरकर मिटा सकें…

ये संप्रभु राष्ट्र के शासक, जो बन बैठे अपनी कुल मर्यादा के विनाशक…। गान्धी की निर्भीकता और साहस को दफ़न करके डर से सहमते हैं… उन मूर्ख आततायियों से, जो एक ‘तानाशाह’ देश की शह पर, मज़हबी खूँरेज़ी के रास्ते से ‘ख़ुदमुख्तारी’ की बात करते हैं…।

आजादी दिलाने वाली पार्टी का विघटन करना ही उचित, यह मेरा नहीं उसी गान्धी का था विचार… लेकिन कत्ल इसका उसी क्षण हुआ जब बनी पहली भारत सरकार…।

गान्धी के ही नाम पर सत्ता की दुकानदारी चलती रही… देश में मक्कारी, गरीबी, मज़हब की तरफ़दारी, और जात-पात की लड़ाई बदस्तूर पलती रही…

गान्धी के इस देश में, उनके विचारों का यूँ तिल-तिलकर मरना हमें बहुत अँखरता है… हमारे सामने ही गान्धी के इन वंशजों के हाथों, गान्धी जो रोज मरता है…।

indiatimes.com से साभार

सोचिए, और बताइए… कहाँ है वो कानून, कहाँ अटक गया है? …गोडसे को फाँसी देने के बाद किस अन्धेरे गलियारे में भटक गया है?
(सिद्धार्थ)

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