आज मेरे घर में बात-बात में एक बहस छिड़ गयी। बहस आगे बढ़कर गर्मा-गर्मी तक पहुँच गयी है। घर में दो धड़े बन गये हैं। दोनो अड़े हुए हैं कि उनकी बात ही सही है। दोनो एक दूसरे को जिद्दी, कुतर्की, जब्बर, दबंग और जाने क्या-क्या बताने पर उतारू हैं। दोनो पक्ष अपना समर्थन बढ़ाने के लिए लामबन्दी करने लगे हैं। मोबाइल फोन से अपने-अपने पक्ष में समर्थन जुटाने का काम चालू हो गया है। अपने-अपने परिचितों, इष्ट-मित्रों व रिश्तेदारों से बात करके अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रमाण और सबूत इकठ्ठा कर रहे हैं। अब आप जानना चाहेंगे कि मुद्दा क्या है…?
तो मुद्दा सिर्फ़ इतना सा है कि यदि कोई व्यक्ति स्कूटी, स्कूटर, मोटरसाइकिल इत्यादि दुपहिया वाहन चलाना सीखना चाहे तो इसके लिए उसे पहले साइकिल चलाना आना चाहिए कि नहीं?
प्रथम पक्ष का कहना है कि जब तक कोई साइकिल चलाना नहीं सीख ले तबतक वह अन्य मोटर चालित दुपहिया वाहन नहीं सीख सकता। इसके समर्थन में उसका तर्क यह है कि दुपहिया सवारी पर संतुलन बनाये रखने का कार्य पूरे शरीर को करना पड़ता है जिसका अभ्यास साइकिल सीखने पर होता है। साइकिल चलाने आ जाती है तो शरीर अपने आप आवश्यकतानुसार दायें या बायें झुक-झुककर दुपहिया सवारी पर संतुलन साधना सीख जाती है। शरीर को यह अभ्यास न हो तो अन्य मोटरचालित दुपहिया वाहन सीख पाना सम्भव नहीं तो अत्यन्त कठिन अवश्य है। इसलिए पहले साइकिल सीखना जरूरी है।
द्वितीय पक्ष का कहना है कि साइकिल चलाने में असंतुलित होने की समस्या ज्यादा इसलिए होती है कि उसमें पैडल मारना पड़ता है। जब पैर दायें पैडल को दबाता है तो साइकिल दाहिनी ओर झुकने लगती है और जब बायें पैडल को दबाता है तो बायीं ओर झुकती है। इस झुकाव को संतुलित करने के लिए शरीर को क्रमशः बायीं और दायीं ओर झुकाना पड़ता है। लेकिन मोटरचालित दुपहिया में यह समस्या नहीं आयेगी क्योंकि उसमें पैर स्थिर रहेगा और पैडल नहीं दबाना होगा। जब एक बार गाड़ी चल पड़ेगी तो उसमें संतुलन अपने आप स्थापित हो जाएगा। इसलिए स्कूटी सीखने के लिए साइकिल चलाने का ज्ञान कत्तई आवश्यक नहीं है।
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इन दो पक्षों में सुलह की गुन्जाइश फिलहाल नहीं दिखती। प्रथम पक्ष का कहना है कि यदि द्वितीय पक्ष एक भी ऐसे व्यक्ति को सामने ला दे जो बिना साइकिल सीखे ही स्कूटी/ मोटरसाइकिल चलाना सीख गया हो तो वह हार मान जाएगा और उस ‘दिव्य आत्मा’ का शागिर्द बन जाएगा। दूसरे पक्ष को किसी ने फोन पर आश्वासन दिया है कि वह ऐसे आम आदमियों, औरतों व लड़के-लड़कियों की लाइन लगा देंगे जिन्होंने ‘डाइरेक्ट’ मोटरसाइकिल- स्कूटर चलाना सीख लिया है।
अब प्रथम पक्ष दिल थामे उस लाइन की प्रतीक्षा में है जो उसके घर के सामने लगने वाली है। लेकिन समय बीतने के साथ अभी उसके आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आयी है क्योंकि अभी कोई उदाहरण सामने नहीं आया है। मुद्दा अभी गरम है। सबूतों और गवाहों की प्रतीक्षा है।
इस मुद्दे को यहाँ लाने का उद्देश्य तो स्पष्ट हो ही गया है कि कुछ जानकारी यहाँ भी इकठ्ठी की जाय। ब्लॉग-जगत में भी तमाम (अधिकांश प्राय) लोग ऐसे हैं जो दुपहिया चलाना जानते हैं। आप यहाँ बताइए कि आपका केस क्या रहा है- पहले साइकिल या ‘डाइरेक्ट’ मोटर साइकिल? निजी अनुभव तो वास्तविक तथ्य के अनुसार बताइए लेकिन इस मुद्दे का व्यावहारिक, वैज्ञानिक और सैद्धान्तिक विवेचन करने की भी पूरी छूट है।
(नोट : घर के भीतर प्रथम पक्ष का प्रतिनिधित्व कौन कर रहा है व दूसरे पक्ष का कौन, यह स्वतःस्पष्ट कारण से गोपनीय रखा जा रहा है।)
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
सितम्बर 17, 2011 @ 16:03:24
मोटर सायकिल चलाने वाले के लिए सायकिल चलाना आवश्यक नहीं है हाँ यदि उसे सायकिल भी चलाने आती है तो यह अच्छी बात है.
सितम्बर 17, 2011 @ 16:17:29
मनोज जी, बात ‘सीखने’ की हो रही है। क्या साइकिल चलाना सीखे बगैर मोटर साइकिल चलाना सीखा जा सकता है? इस प्रश्न का उत्तर खोजा जा रहा है।
सितम्बर 17, 2011 @ 16:54:38
"आज मेरे घर में बात-बात में एक बहस छिड़ गयी। बहस आगे बढ़कर गर्मा-गर्मी तक पहुँच गयी है। घर में दो धड़े बन गये हैं। दोनो अड़े हुए हैं कि उनकी बात ही सही है। दोनो एक दूसरे को जिद्दी, कुतर्की, जब्बर, दबंग और जाने क्या-क्या बताने पर उतारू हैं। दोनो पक्ष अपना समर्थन बढ़ाने के लिए लामबन्दी करने लगे हैं। मोबाइल फोन से अपने-अपने पक्ष में समर्थन जुटाने का काम चालू हो गया है। अपने-अपने परिचितों, इष्ट-मित्रों व रिश्तेदारों से बात करके अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रमाण और सबूत इकठ्ठा कर रहे हैं""और उस ‘दिव्य आत्मा’ का शागिर्द बन जाएगा।"पहले तो चुन्नी/चुरकी ही सटक गयी कि मामला कहाँ पहुँच रहा है ….बहरहाल मैं आप वाले पक्ष में हूँ -बिना सायकिल चलाये मोटर साईकिल चलना थोडा जोखिम का काम है …रोड सेन्स नहीं होगा न 🙂 और यह भी कि बिच्छी क मन्त्र ही न जाने और सांप के बिल में उंगली ?
सितम्बर 17, 2011 @ 17:25:12
अपुन ने तो गाँव में डायरेक्ट या इनडायरेक्ट केवल साईकिल ही सीखी है वह भी पहले अद्धी (कैंची)फिर पूरी….शुरू में दो-चार बार हाथ-पैर तोड़े उसके बाद तो कई मील तक हैंडल पकडे बिना ही सरपट भागते थे !दिल्ली में आकर सबकुछ छूट गया,बाइक या कार अभी भी नहीं छुआ !झगडा तो हमारा अकसर मोबाइल या कंप्यूटर को लेकर ही होता है,पर अंत में जीत हमारी ही होती है !
सितम्बर 17, 2011 @ 17:36:57
अत्यधिक रोचक मुद्दा कम से कम मेरे लिए।यह मुद्दा तो मेरे घर में दो साल पहले ही उठ चुका है। जब घर में पुत्री के लिए स्कूटी आई तो मैने श्रीमती जी से कहा कि तुम भी सीख लो। उनका कहना था कि मैने कभी साइकिल नहीं चलाई तो कैसे सीख सकती हूँ ? संभव ही नहीं है। मैने भी वही तर्क दिये जो आपने ऊपर लिखे हैं कि स्कूटी चलाना तो और भी आसान है..प्रयास तो करो। लेकिन उनकी हिम्मत नहीं हुई। मामला दब गया। चलिए अब आपकी पोस्ट दिखाकर फिर उठाता हूँ।लेकिन पहले साइकिल न चला सकने वाला चला सकता है सिद्ध हो तभी उठाना ठीक है। बिला बात कौन मुंह पिटाये।मैं तो कहता हूँ..चला सकता है।
सितम्बर 17, 2011 @ 18:50:27
साइकिल में सीखने से मोटरसाइकिल व चालक दोनों की बचत हो जाती है।
सितम्बर 17, 2011 @ 18:52:14
@ "आज मेरे घर में बात-बात में एक बहस छिड़ गयी। बहस आगे बढ़कर गर्मा-गर्मी तक पहुँच गयी है। ——- इस उम्र में अर्धांगिनी से ज्यादा लड़ना भिड़ना नहीं चाहिये…..आदमी को अपना हाथ-गोड़ खुद ही बचाकर रहना चाहिये, और सबसे जरूरी, गर्मा-गर्मी के दौरान अपनी सीमा समझ लेनी चाहिये कि इससे ज्यादा मुँह फूला-फूली होने पर भोजन न मिलने की संभावना है, हो सकता है खुद ही आंटा-पिसान लेकर सानना पड़े, सब्जी-वब्जी काटनी पड़े। कोशिश की जानी चाहिये कि नौबत आलू-भिण्डी काटने तक न पहुंचे 🙂 वैसे साइकिल चलाने के बाद स्कूटी या मोटरसाईकिल लेना ठीक रहेगा। लेकिन ये बातें केवल कहने के लिये होती हैं, सुनने गुनने में अच्छी लगती हैं किंतु घरेलू मामलों में होइहै वही जो श्रीमतीजी रचि राखा 🙂
सितम्बर 17, 2011 @ 19:42:57
:)यह समस्या अनशन से हल हो सकती है। वैसे हमारे घर में बहस यह है कि क्या नाव चलाना सीखने से पहले साइकल सीखना आवश्यक है या नहीं। अगर यह समस्या मज़ाक न होकर वास्तविक है तो – साइकल या मोटरसाइकल एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से सीखे और चलाये जा सकते हैं। मैं ऐसे कई बच्चों को जानता हूँ जिन्होंने पहले बिजली/पेट्रोल के स्कूटर चलाये और बाद में साइकिल की बारी आयी।
सितम्बर 17, 2011 @ 20:39:08
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सितम्बर 17, 2011 @ 20:39:09
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सितम्बर 17, 2011 @ 23:17:17
@क्या साइकिल चलाना सीखे बगैर मोटर साइकिल चलाना सीखा जा सकता है?—-जी बिलकुल,मोटर साइकिल चलाना सीखनें के लिए सायकिल चालक होना जरूरी नहीं है.
सितम्बर 17, 2011 @ 23:23:44
हमारा वोट भाभी जी के साथ :-)वैसे अब साईकिल सीखने में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि सीधे स्कूटी सीखी जाए!
सितम्बर 17, 2011 @ 23:26:38
हमारा वोट भाभी जी के साथ :-)वैसे अब साईकिल सीखने में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि सीधे स्कूटी सीखी जाए!
सितम्बर 17, 2011 @ 23:33:24
भाई!साइकिल जब चलाना सीखा था तो मोटर सायकिल चलाना सपने में भी नजर नहीं आता था। अब कार भी चलाते हैं। यूँ मोपेड, स्कूटर, मोटर सायकिल सब खरीदी भी हैं और चलाई भी हैं। आप के सवाल का उत्तर तो नहीं दूंगा पर इतना जरूर है कि कार चलाना सीखने के पहले कोई चौपाया चलाना सीखना जरूरी नहीं लगा। हाँ, जब हमारी एक मामी जी बदन से भारी हो गईं तो मामाजी उन से कहा करते थे, तुम्हें साइकिल चलाना सीख लेना चाहिए।
सितम्बर 18, 2011 @ 00:18:53
पक्ष कोई भी हो, फैसला चाहते हो तो कुछ डिन्नर-विन्नर का प्रबंध हो तो बात बने:)
सितम्बर 18, 2011 @ 07:12:33
हमारे घर में भी यही तंज चलता रहता है , स्कूटी चलाना सीखना चाह रही हूँ तो बच्चे कहते हैं पहले सायकिल सीखनी होगी , ये कोई बात है भला !
सितम्बर 18, 2011 @ 09:08:32
मेरा वोट 'प्रथम पक्ष' के साथ
सितम्बर 18, 2011 @ 09:28:27
ये पोस्ट पढ़ कर टी वी पर आता विज्ञापन याद आगयावो जिसमे दो महिला कपड़े धो कर सुखा रही हैं और पड़ोसन आ कर कहती हैआप के बेटे की कमीज मेरे घर में उड़ कर आगई थी इस लिये मैने धो दीजिन लोगो को ब्लोगिंग पर अपनी पोस्ट छपवाने के लिये सरकारी ग्रांट मिल चुकी हो उनके यहाँ कुछ बेहतर लेखन की उम्मीद रहती हैं ये सोच कर की ये सरकारी अनुदान प्राप्त लेखक हैं पर यहाँ आकर निराशा हाथ लगी .
सितम्बर 18, 2011 @ 10:01:09
पोस्ट = पुस्तक
सितम्बर 18, 2011 @ 11:21:51
हमारा जमाना तो सायकिल का ही था, पहले घर में सायकिल ही आयी थी फिर मोपेड और बाद में स्कूटर। किसी से भी सीखने की पहल करो, जमीन सख्त नहीं होनी चाहिए क्योंकि घुटने फूटने का अंदेशा दोनों में ही बराबर है। स्कूटर में रिस्क कुछ ज्यादा ही है, क्योंकि वहाँ साथ में रफ्तार भी है।
सितम्बर 18, 2011 @ 12:47:09
ये सही है कि आमतौर पर मोटर साईकिल चलाने के लिए पहले साईकिल को चलाना आना ज़रुरी है लेकिन मेरा बेटा इसका अपवाद है…उसने पहले मोटर साईकिल चलानी सीखी और बाद में साईकिल…ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि उसने पहले मोटर साईकिल को कंप्यूटर की विडियो गेम में चलाना सीखा और बाद में साईकिल को सड़क पर
सितम्बर 19, 2011 @ 05:08:39
पहले तो मैं पोस्ट पढ़कर (पढ़ते पढ़ते) जी भर कर खूब मुसकुराई। और साफ साफ देखती रही कि किस प्रकार के लहजे और अंदाज़ में किस किस ने क्या तर्क और प्रमाण दिए होंगे। रही सही कसर टिप्पणियों ने पूरी कर दी। मजा उन दृश्यों की झलक में आया कि अमुक अमुक टिप्पणी पर किस किस ने कैसी प्रतिक्रिया की होगी और किस किस शब्द पर क्या कहा होगा, कहाँ कहाँ हँसी आई होगी और कहाँ कहाँ हे भगवान निकला होगा। अब जाने भी दो, बिना साईकिल, सीधे स्कूटी पर सवारी हो जाने दो न ! काहे पंगा करते हो दोनों !!
सितम्बर 19, 2011 @ 06:20:40
परिवार रथ के दरे पहियों के बीच इन्हीं बहसों से तालमेल बनता है, अनिर्णित रहने दें यह बहस.
सितम्बर 19, 2011 @ 16:58:46
इसका जवाब क्या दूं। देश-राज्य चलाने भी बिना पहले कुछ चलाए लोग चला लेते हैं। ये निर्भर करता है कि चलाने वाला कैसा है। साइकिल, मोटरसाइकिल, कार या फिर कुछ और या देश सब मन बना लेने से चल जाता है। कोई न्यूनतम अर्हता जरूरी नहीं 🙂
सितम्बर 20, 2011 @ 07:34:16
अब क्या फ़ैसला हुआ बताया जाये! 🙂
सितम्बर 20, 2011 @ 10:59:35
अभी पंचों में एक राय बनती नहीं दिखती।अलबत्ता कुछ पुराने दर्द उभर आये हैं। 🙂
सितम्बर 20, 2011 @ 17:11:12
मेरी अधिकांश मित्र सायकिल चलाना नहीं जानती हैं मगर स्कूटी-मोटरसायकिल मजे से चलाती हैं..
सितम्बर 21, 2011 @ 17:47:08
अपनी बात कहूँ तो सायकिल खूब चलाया है शादी से पहले तक, पर इससे एडवांस दुपहिया चलने का अवसर नहीं मिला…लेकिन हाँ, यह कहा जा सकता है कि आदमी सीखना चाहे अभ्यास करे तो कुछ भी चला सकता है,चाहे वह घोडा हो या हवाई जहाज..इसलिए मोटरसाइकिल/ स्कूटी सीधे चलने के इक्षुक को हतोत्साहित न करें…
दिसम्बर 23, 2016 @ 18:51:03
Abhi isi mudde par shodh chal rha he current main..
Parinam ane par suchna dungi k main kis dhade main shamil hu 😂😂🤔🤔
सितम्बर 07, 2017 @ 14:43:49
mujhe cicle chalani nhi aati but scooty chala leti hu …mushkil tha but aap irada kar le ek baar to kuchh bhi kar sakte
अप्रैल 20, 2018 @ 10:35:23
M delhi se hu or mere badi didi japur m rahti h jinhone skuti chalana siki h wo hbe bina sacil sike