अगस्त 15, 2009
सत्यार्थमित्र
आस-पास, इंटरनेट, कविता, कुण्डलियाँ, खबरिया चैनेल, ग़जल, गाँव-गिरांव, जरा हट के, तुकांत कविता, धरोहर, नये हस्ताक्षर, परम्परा और आधुनिकता, पुस्तकालय, प्रिन्ट मीडिया, ब्लॉगरी, ब्लॉगिंग की पाठशाला, भारतीय संस्कृति, भोजपुरीतुकांत कविता, यादें, लोकनीति, वेद-पुराण-उपनिषद, संग्रहित पन्ने, संस्कार, सत्ता, सत्यार्थ, सभ्यता का विकास, समानता, सरकार, सरस्वती, साहित्य, स्त्री विमर्श, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, cow-belt
आज स्वतन्त्रता दिवस है, और आज मेरी पुस्तक प्रेस से छूटकर मेरे घर आ गयी है। हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने इसे छापकर निश्चित रूप से एक नयी शुरुआत की है। कहना न होगा कि आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ।
ब्लॉग की किताब छापना व्यावसायिक रूप से कितना उपयोगी है इसका पता शायद इस किताब पर पाठकों की प्रतिक्रिया से पता चलेगा। अलबत्ता जिस संस्था ने इसका प्रकाशन किया है, उसके पास अपने उत्पादों के विपणन का कोई नेटवर्क नहीं है। पुराने जमाने में देश भर के लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार यहाँ आते रहते थे और एकेडेमी के बिक्री काउण्टर पर उपलब्ध प्रकाशनों को खरीदते थे और अपने शहर जाकर इसके बारे में बताते थे। इसप्रकार यहाँ की धीर गम्भीर, व शोधपरक पुस्तकें धीरे-धीरे लम्बे समय में बिकती थीं। कुछ खरीद सरकारी पुस्तकालयों द्वारा की जाती थी।
पहली बार लोकप्रिय श्रेणी की एक ऐसी हल्की-फुल्की पुस्तक प्रकाशित हुई है जिसे आमपाठक वर्ग को आकर्षित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। लेकिन आम पाठकों तक इसे पहुँचाने का सही माध्यम क्या है, इसकी जानकारी हमें नहीं है। एकेडेमी द्वारा भी इस दिशा में कोई स्पष्ट व सुविचारित नीति अपनाये जाने का उदाहरण नहीं मिला है।
अतः मैं यहाँ अपने शुभेच्छुओं, मित्रों और वरिष्ठ चिठ्ठाकारों से अनुरोध करता हूँ कि वे इस सद्यःप्रकाशित ब्लॉग की किताब के प्रचार-प्रसार और बिक्री के कारगर उपाय सुजाने का कष्ट करें।
सत्यार्थमित्र पुस्तक का आवरण
इस पुस्तक में मेरे ब्लॉग सत्यार्थमित्र पर प्रकाशित अप्रैल-२००८ से मार्च-२००९ तक की कुल १०१ पोस्टों में से चयनित ६५ पोस्टें संकलित की गयी हैं। प्रत्येक पोस्ट के अन्त में कुछ चुनिन्दा टिप्पणियों के अंश भी दिये गये हैं। ऐसी टिप्पणियों को स्थान दिया गया है जिनसे कोई नयी बात विषयवस्तु में जुड़ती हो।
पुस्तक के अन्त में दिए गये परिशिष्ट में हिन्दी ब्लॉगजगत के सर्वाधिक सक्रिय ४० चिठ्ठों का नाम-पता दिया गया है जिनका सक्रियता क्रमांक चिठ्ठाजगत द्वारा निर्धारित है।
कुल २८८ पृष्ठों के इस सजिल्द संस्करण का बिक्री मूल्य रु.१९५/- मात्र रखा गया है। इसपर एकेडेमी की नीति के अनुसार छूट की व्यवस्था भी है।
तो देर किस बात की… आइए प्रिण्ट माध्यम में हिन्दी ब्लॉगजगत का एक झरोखा खोलने के इस अनुष्ठान में अपना भरपूर योगदान करें। इसके बारे में उन्हें बतायें जो अभी अन्तर्जाल की सुविधा से नहीं जुड़ सके हैं। पुस्तक प्राप्त करने का तरीका हिन्दुस्तानी एकेडेमी के जाल पते पर उपलब्ध है।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
अप्रैल 12, 2009
सत्यार्थमित्र
आडवाणी, कविता, कुण्डलियाँ, कुर्सी, चकल्लस, चुनाव, तुकांत कविता, धरोहर, न्याय, पूजा, मंथन, मन्त्री, राज-काज, सत्ता, सरकार
आजकल चुनावी सरगर्मी में कोई दूसरा विषय अपनी ओर ध्यान नहीं खींच पा रहा है। दिनभर दफ़्तर से लेकर घर तक और अखबार-टीवी से लेकर इण्टरनेट तक बस चुनावी तमाशे की ही चर्चा है। सरकारी महकमें तो बुरी तरह चुनावगामी हो गये हैं।
ऐसे में मेरा मन भी चुनावी कविता में हाथ आजमाने का लोभ संवरण नहीं कर सका। तो लीजिए पेश हैं:
चुनावी कुण्डलियाँ
वामपन्थ की रार से अलग पड़ गया ‘हाथ’। सत्ता की खिचड़ी पकी, अमर मुलायम साथ॥
अमर मुलायम साथ चले कुछ मास निभाए। बजा चुनावी बिगुल, छिटक कर बाहर आए॥
यू.पी. और बिहार में, नहीं ‘हाथ’ का काम। तीन-चार मोर्चे बने, ढुल-मुल दक्षिण-वाम॥
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अडवाणी की मांग पर, मनमोहन हैं मौन। सत्ताधारी पीठ का, असली नेता कौन॥
असली नेता कौन समझ में अभी न आया। अडवानी, पसवान, मुलायम, लालू, माया॥
लोकतंत्र का मन्त्र, जप रही बर्बर वाणी। ‘पी.एम. इन वेटिंग’ ही बन बैठे अडवाणी॥
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नेता पहुँचे क्षेत्र में, भाग-भाग हलकान। वोटर से विनती करें, हमें चुने श्रीमान्॥
हमें चुनें श्रीमान्, करूँ वोटर की पूजा। मैं बस एक महान, नहीं है काबिल दूजा॥
मचा चुनावी शोर, घोर घबराहट देता। पाँच वर्ष के बाद लौटकर आया नेता॥
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आप चुनाव का भरपूर आनन्द लीजिए। लेकिन एक विनती है कि मतदान के दिन धूप, गर्मी, और शारीरिक कष्ट की परवाह किए बिना अपना वोट ई.वी.एम. मशीन में लॉक कराने जरूर जाइए। यदि हम इस महत्व पूर्ण अवसर पर अपने मताधिकार का सकारात्मक प्रयोग नहीं करते हैं तो राजनीतिक बहसों में हिस्सा लेने का हमें कोई हक नहीं है।
(सिद्धार्थ)
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अगस्त 15, 2008
सत्यार्थमित्र
अपनी बात, कविता, कुण्डलियाँ, मंथन, राज-काज, सभ्यता का विकास
(१)
देखो भाई आ गया, फिर पन्दरह अगस्त।
आग लगी है देश में, नेता फिर भी मस्त।
नेता फिर भी मस्त, खूब झण्डा फहराया।
जम्मू कर्फ्यूग्रस्त, बड़ा संकट गहराया॥
सुन सत्यार्थमित्र बैरी को बाहर फेंको।
सर्प चढ़ा जो मुकुट, दंश देता है देखो॥
(२)
आज़ादी की बात पर होता नहीं गुमान।
बहुत गुलामी देश में पसरी है श्रीमान्॥
पसरी है श्रीमान् यहाँ बदहाल गरीबी।
जाति-धर्म के भेद और आतंक करीबी॥
घोर अशिक्षा, पिछड़ापन, बढ़ती आबादी।
भ्रष्टतंत्र की भेंट चढ़ी अपनी आज़ादी॥
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